Tuesday, November 7, 2023

#देश

नारियाँ,

पूजी जाती थी,

देवता रहा करते थे.

नारियाँ,

प्रताड़ित हो रही  है,

देवता, देश में  जाने कहाँ रह रहें  हैं .

Sunday, October 29, 2023


#देश

 देश ने कभी अपने कुटुंब की कल्पना,

वसुधा भर की मानवता से की थी,

अब देश के लोगों की महत्ता,

बस मतगणना तक है,

देश का राजकाज,

कभी खड़ाऊँ से चलता था,

अब देश का,

पंचायती राज भी,

भड़काऊ भाषण से चलता है .

Friday, October 27, 2023

# देश


 देश लिखता था

शिलाओं - भोजपत्रों पर,

धर्म, 

साहित्य,

विज्ञान,

नृत्य,

योग और तर्क,

देश अब लिखता है वाट्सऐप पर,

और करता है कुतर्क .

Thursday, October 26, 2023

#देश

 देश कभी ऋषियों का था,

फिर राम का,


बुद्ध का भी हुआ,


इसी क्रम में 


रिसते – घिसते 


ये देश गांधी का भी हुआ, 


और अंत में ये हुआ, 


गद्दी पर बैठे बाबुओं का,


जिनके पास,


ऋषि,


राम,


बुद्ध,


गांधी,


सबकी फ़ाइलें पड़ी है। 

Wednesday, October 25, 2023

#देश


बहुत से लोग, 


कुछ लोगों की वजह से, 


अपनी चार ठठरी,

और एक गठरी के साथ, 

देश से पलायन किए, 

खोजते  हुए अपना देश । 

अब देश उन्हें धमकाता है,

आंख दिखाता है, 

याद दिलाता है, 

कि इस देश में रहना है,

तो फ़लाँ फ़लाँ  कहना है, 

नहीं तो भेज देंगे तुम्हें, 

तुम्हारे अपने देश

Monday, October 23, 2023

देश

 #देश, 

जहाँ लोग साथ रहते हो, 

और जहाँ सरकारें भी रहती हो, 

पर जहाँ सरकारें रहती है,

वहाँ लोग साथ नहीं रह पाते,

सरकारें, लोगों को साथ नहीं रहने देती,

सरकार की लाख कोशिश के बाद, 

जो लोग साथ रह भी जाते हैं, 

सरकार उनके बीच साथ रहने का एहसास नहीं रहने देती। 

Monday, August 23, 2021

नयी बात

राजनीति का पतन कब का हो चुका था, पर समझ में अब आ रहा है, नगद और जमा करने वाले लोग आँख में मूँद कर बैठ गए है। और गरीब  करोना और भगवान को कोस रहे है,  जिन चीजों पर धन्यवाद लिया जा सकता है, लिया जा रहा है, जैसे मुफ़्त की वैक्सीन, या फिर मुफ़्त का कुछ भी, सैंतालिस की विभीषिका अक्षरशः  याद है, और दो महीने पहले की विभीषिका अभी प्री मेच्योर है, तो बात करने के लायक़ भी नहीं है । मेरे जीवन से सम्बंधित एक साँस लेता हुआ शरीर मुझसे पूछता  है, (क्या करोगे ज़ेंडर जान कर?) आप के कितने मुस्लिम दोस्त है, पहले मैं चुप रहा फिर मैंने चार - पाँच नाम गिना दिए, आगे की समरस व्याख्या सबको पता है ऐसी बातों के उपसंहार में क्या बोलना होता है। गाड़ी कहाँ जा रही है, अगर सवारी गलती से बैठ गयी है, तो ड्राइवर को तो पता ही होना चाहिए। ड्राइवर बोलता है, साठ साल से इंजन ख़राब है, मैं क्या करूँ, अबे तूने नौकरी ही इसी बात की ली थी की सही से चलाएगा। कभी कभी सोचता हूँ, हो सकता हो कही किसी और गोले से कोई हमें देख रहा हो, और अपनी समस्याओं का ठीकरा धरती के रेफरेंस में दे रहा हो, की इतना ही दिक़्क़त धरती पर चले जाओ, देखो वहाँ कहीं - कहीं तेल सस्ता है, पर जीवन जीना कितना मुश्किल है। जहां तक मैं समझ पाया हूँ, धर्म किसी समय में विज्ञान और व्यवहार की उच्चतम स्थिति रहे होंगे और  तर्क हीन लोगों ने उसे जड़ कर दिया।और यही जड़ता हर फ़साद की जड़ है।