Thursday, February 14, 2013

आनंदा देशी घी

 
अब बिट्टू के छक्के  
शीशे नहीं तोड़ते
बिल्डिंग ही पार कर जाते हैं

अब पापा भी फ़ाइले , घर नहीं लाते
सारे काम ऑफिस में ही निपटाते है

अब दादा जी
घुटनों पर दवा नहीं
बल्कि पार्क के चार चक्कर लगाते है

अब दादी दीदी को डांस सिखाती है

और अब तो मम्मी भी मुस्कुराती है
चख लो जिंदगी
ले लो अनन्दा

हर पल जिंदगी हर रोज
गोपालजी आनन्दा शुद्ध देशी घी के साथ

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