अब बिट्टू के छक्के
शीशे नहीं तोड़ते
बिल्डिंग ही पार कर जाते हैं
अब पापा भी फ़ाइले , घर नहीं लाते
सारे काम ऑफिस में ही निपटाते है
अब दादा जी
घुटनों पर दवा नहीं
बल्कि पार्क के चार चक्कर लगाते है
अब दादी दीदी को डांस सिखाती है
और अब तो मम्मी भी मुस्कुराती है
चख लो जिंदगी
ले लो अनन्दा
हर पल जिंदगी हर रोज
गोपालजी आनन्दा शुद्ध देशी घी के साथ
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