हाँ मैं
अपनी कविताओं में
तुम्हे ढूँढता हूँ
पर अंतरे से पूर्ण विराम तक
तुम कहीं मिलती ही नहीं
हाँ मैं
चाहता हूँ
तुम्हे रच लूं
अपनी कविताओं में
पर तुम हो की मेरे शब्दों में ढलती ही नहीं
हाँ मैं
अपनी आँखों से तुम्हे छूना चाहता हूँ
पर तुम हो , या कोई हिरनी चपल
मेरी आँखों में संभलती ही नहीं
हाँ मैं
चाहता हूँ ,
अपनी सासों में ,
तुम्हे महक लूं
पर तुम हो या कोई वायु प्रखर
मेरी सासों से गुजरती ही नहीं
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