Sunday, November 25, 2012

हाँ मैं अपनी कविताओं में तुम्हे ढूँढता हूँ

हाँ मैं 
अपनी कविताओं में 
तुम्हे ढूँढता हूँ 
पर अंतरे से पूर्ण विराम तक 
तुम कहीं मिलती ही नहीं 


हाँ मैं 
चाहता हूँ 
तुम्हे रच लूं 
अपनी कविताओं में 
पर तुम हो की मेरे शब्दों में ढलती  ही नहीं 

हाँ मैं 
अपनी आँखों से तुम्हे छूना चाहता हूँ 
पर तुम हो , या कोई हिरनी चपल 
मेरी आँखों में संभलती  ही नहीं 

हाँ मैं 
चाहता हूँ ,
अपनी सासों  में ,
तुम्हे महक लूं 
पर तुम हो या कोई वायु प्रखर 
मेरी सासों से गुजरती ही नहीं 

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