क्यों ना हम
खुद की तुलना
नाव से कर देते है
हम सच में
ऐसे ही होते है
नाव
कुछ लकड़ियों का ढांचा
जैसे सूखी गाय का उल्टा पेट
चारो टांगो का ऐसा आकार
मानो नाविक लिए हो पतवार
दोनों विरोधी छोरों पर
और सही गलत का
करते व्यापार
पतला मुह
ताकते अम्बर
मानो घासों के गुच्छे
लगे है कहीं नभ पर
तो अब तुम
आ जाओ
अपने विरोधाभासों को लिए हुए
उतर ही आओ
और गिनते रहो
उन अपराधों को
जो तुमने कभी किये हुए है
लहरें तो विधाता है
कम से कम
उस किनारे तक
वे तुमसे खेलेंगी
और तुम्हारा इम्तेहान भी ले लेंगी
चाहे डूबा दे तुझे
बीच मझधार
या पहुंचा दे
उस पार
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