Friday, July 27, 2012

नाव जैसे हम

क्यों ना हम 
खुद की तुलना 
नाव से कर देते है 
हम सच में 
ऐसे ही  होते है 
नाव 
कुछ लकड़ियों का ढांचा 
जैसे सूखी गाय का उल्टा पेट 
चारो टांगो का ऐसा आकार 
मानो नाविक लिए हो पतवार 
दोनों विरोधी छोरों पर 
और सही गलत का 
करते व्यापार 
पतला मुह 
ताकते अम्बर 
मानो घासों के गुच्छे 
लगे है कहीं नभ पर 
तो अब तुम 
आ जाओ 
अपने विरोधाभासों  को लिए हुए 
उतर ही आओ 
और गिनते रहो 
उन अपराधों को 
जो तुमने कभी किये हुए है 
लहरें तो विधाता है 
कम से कम 
उस किनारे तक 
वे  तुमसे खेलेंगी 
और तुम्हारा इम्तेहान भी ले लेंगी 
चाहे डूबा दे तुझे 
बीच मझधार 
या पहुंचा  दे 
उस पार  


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