Tuesday, July 10, 2012

मेरे कुछ दोस्त जिनसे अब कोई बात नहीं होती


चाय की गर्म चुस्कियों में 
कुछ वादे भी उड़े थे 
भाप की तरह 
शुरू शुरू में तो वो गर्म थे 
पर बाद में जैसा की होता आया है 
वो ठन्डे हो चले थे 
आब की तरह 
ये मैं ही था 
जो उन्हें समटने चला था
शायद इसिलिये तो  मेरा ही हाथ जला था 
पर ये भी क्या कम था 
जो उनका चेहरा खिला था 
और वो भी तो रुके थे 
आब और भाप के बीच 
नफे और नुक्सान को तौल रहे थे 
बनिए के हिसाब की तरह ..!!!!

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