चाय की गर्म चुस्कियों में
कुछ वादे भी उड़े थे
भाप की तरह
शुरू शुरू में तो वो गर्म थे
पर बाद में जैसा की होता आया है
वो ठन्डे हो चले थे
आब की तरह
ये मैं ही था
जो उन्हें समटने चला था
शायद इसिलिये तो मेरा ही हाथ जला था
पर ये भी क्या कम था
जो उनका चेहरा खिला था
और वो भी तो रुके थे
आब और भाप के बीच
नफे और नुक्सान को तौल रहे थे
बनिए के हिसाब की तरह ..!!!!
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