Sunday, June 24, 2012

जो तुम आयी हो




जो तुम आयी  हो
तो संग ये तितलियाँ क्यों लायी हो 
अब ये चाह्केंगी 
मेरे पूरे कमरे में 
सतरंगी परों संग महकेंगी 
देखो ये जो अँधेरे है    
बंद अलमारियों 
और दराजों में 
तुम्हारी ये तितलियाँ उनसे भी उल्झेंगी 
पर तुम्हे क्या 
तुम तो खुशियों की परछाई हो 
उजालों की अंगडाई हो 
तकिये के पास जो पड़ी है मेरी एश ट्रे 
तुम भी तो वहां  तक पसर आई हो 

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