किसी ने पूछा ,
बारिश क्या हैं
उन्हें जवाब मिला
वहीँ आस पास ही बैठे किसी
ओजश्वी से
बारिश स्त्री हैं
जो जितना ताप सहती
उतनी ही हल्की हो ऊपर उठती
फिर स्वयं में बटुर जाती
मनन करती
थोडा समय लेती
( आप इसे ऋतुओं का बदलना भी समझ सकते हैं )
फिर एक काला घना रूप लेती
मानो अभी डांट देगी
माँ के सामान
पर अंत में बरस ही पड़ती
बिना किसी भेद भाव के
बिना किसी दूर दुराव के
हम पर तुम पर सबपर
फिर नीचे आकर
कहीं किसी छिछले में बटुर जाती
मनन करती
थोडा समय लेती
फिर ताप सहती
जितना ताप सहती
उतनी ही हल्की हो ऊपर उठती
No comments:
Post a Comment