कहीं पे तो खड़ा हूँ
निश्चय और अनिश्चय के बीच
क्रोध और तुम्हे लेकर
किसी को तो छोड़ना होगा
यही नियति है
पर प्रेम
जिसे अनसुना किया
तुमने और मैंने भी
टीस सा चुभता है
जैसा तुममे
ठीक वैसा मुझमे भी
अगर हो सके तो आ जाओ
मैं क्रोध को निकाल कर थोड़ी जगह बना लूँगा
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