Thursday, April 19, 2012

क्रोध और तुम


कहीं पे तो खड़ा हूँ 
निश्चय और अनिश्चय के बीच 
क्रोध और तुम्हे लेकर 
किसी को तो छोड़ना होगा 
यही नियति है 
पर प्रेम 
जिसे अनसुना किया 
तुमने और मैंने भी 
टीस सा चुभता है 
जैसा तुममे 
ठीक वैसा मुझमे भी 
अगर हो सके तो आ जाओ 
मैं क्रोध को निकाल कर थोड़ी जगह बना लूँगा

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