सच में
कभी कभी
लगता है
मैं कितना लकी हूँ
मैंने अब जाना
अकेले रहना
और जीना
कितना लकी होना है
बिना किसी टोक के ,
खिड़कियां खोल देना
सुबह कि शीत बींध देती है
आत्मा हड्डिया मांस मज्जा
सब कुछ
या फिर
अंदर से बंद मेरा कमरा
मानो मेरा जहा है
या फिर
दारु कि जादुई बोतले
जिसमे शराब कभी ख़तम नहीं होती
या फिर
आमत्रित करती किताबे
कि आओ पढ़ो मुझे
या फिर
सी पी से लिया लेदर पर्स
जो हमेशा मुह फाड़े रहता है पैसे उगलने को
सच में अकेले रहना
और जीना
कितना लकी होता है
मैंने अब जाना
कभी कभी
लगता है
मैं कितना लकी हूँ
मैंने अब जाना
अकेले रहना
और जीना
कितना लकी होना है
बिना किसी टोक के ,
खिड़कियां खोल देना
सुबह कि शीत बींध देती है
आत्मा हड्डिया मांस मज्जा
सब कुछ
या फिर
अंदर से बंद मेरा कमरा
मानो मेरा जहा है
या फिर
दारु कि जादुई बोतले
जिसमे शराब कभी ख़तम नहीं होती
या फिर
आमत्रित करती किताबे
कि आओ पढ़ो मुझे
या फिर
सी पी से लिया लेदर पर्स
जो हमेशा मुह फाड़े रहता है पैसे उगलने को
सच में अकेले रहना
और जीना
कितना लकी होता है
मैंने अब जाना
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