Thursday, January 2, 2014

पीने के बाद लिखी गयी कवितायें

कविता नंबर एक

काफी मग में
दारु लेकर
निकल जाता हूँ
दूर तलक
नए जूते
पहन के
हाँ ये पसंद है ( नए जूते )
थोडा सोच के लिया था इसे
ठंडी हवाओं
और सर्द ओस के बीच
खुद को श्वेत  महसूस करता हूँ
 बिलकुल श्वेत
कही कोई घाव नहीं
कही कोई जमाव नहीं
लगता ही नहीं
कि कुछ है
बस शर्द
बस श्वेत
और मैं
यहाँ मेरी
अट्टहास भी
खामोश हो के रह जाती है

कविता नंबर दो

ख्वाब तुम मेरे नहीं हो
मैं जानता हूँ
तुम थोपे हुए हो
प्रेम तुम मेरे नहीं हो
मैं जानता  हूँ
तुम कहीं नहीं हो
शून्य बस तुम मेरे हो
और निर्वात
हाँ निर्वात
जहा मैं  पहुँचता हूँ
शून्य से गुजरने के बाद
ये थोडा हाइपोथेटिकल है
पर यही सच है मेरा

कविता नंबर तीन

क्या लिखूं
क्यों लिखूं
जो है
वो है
जो नहीं है
वो नहीं है
दैट्स इट ..

कविता नंबर चार

मुझे पता है
खुश होने पे
या निराश होने पे
मैं बस पी सकता हूँ
इसलिए बस पीता हूँ

थोडा ह्यूमर

हा हा हा
मेरे दारु पे
मक्खी बैठ गयी
और उसे भी
नशा हो गया


 

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