Sunday, October 20, 2013

हाँ, मैं सीख रहा हूँ , तुम्हारे बगैर जीना

हाँ, 
मैं सीख  रहा हूँ ,
तुम्हारे बगैर जीना 
तुम्हारी चीजें 
और यादें 
अब भी मेरे साथ है 
कभी कभी 
उन्हें लिए 
यूँ ही बाहर  निकल जाता हूँ 
यकीन मानो , ऐसा ही होता है 
तुम्हारी पसंदीदा आइसक्रीम 
मेरे दुसरे हाथ में पिघल जाती है 
मगर तुम्हारी कसम 
मैं उसे छूता  तक नहीं 
अब, लोग मुझे शक की नजर से देखते है ,
और मैं उन्हें देखने देता हूँ 
हाँ अभी सीख ही तो रहा हूँ 
तुम्हारे बगैर जीना 
अब भी खाली रखता हूँ 
तकिये की बराबर वाली जगह 
क्या पता तुम कब आ धमक पड़ो
यकीन मानो 
तुम्हारी नापसंदगी ,
अब मेरी भी नापसंदगी बन चुकी है 
बस तम्हारी तरह खिलखिला के हँस नहीं पता 
कभी कभी 
बेवजह आंसू  निकल आते 
ना जाने क्यों 
तुम्हारे गए तो अरसा हो गया है 
फिर भी, उन्हें भी नहीं रोकता 
जैसे तुम्हे भी तो नहीं रोक पाया था 

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