हाथ आगे बढाया,
पर मिला कुछ नहीं,
था वही ,
बस अँधेरा,
अन्धेरा .....
स्याह अँधेरा
और आगे बढ़ा
तो मिला
और अँधेरा
इसी अँधेरे में टटोलता रहा , भरसक
जितना भी आगे बढ़ा ,
मिलता ही रहा
उतना ही अँधेरा ...!!!
और बढ़ो ....देखो ,अन्त में ,इतना अन्धेरा आ कहा से रहा है ....कोई अन्धेरोत्री तो नहीं ?
ReplyDeleteहर पोस्ट की पहिलकी लईनिया को पोलियों काहे हो जाता है बे
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