Wednesday, June 19, 2013

जितना भी आगे बढ़ा मिलता ही रहा उतना ही अँधेरा...

हाथ आगे बढाया, 

पर मिला कुछ नहीं,

था वही ,

बस अँधेरा, 

अन्धेरा .....

स्याह अँधेरा 

और आगे बढ़ा 

तो मिला 

और अँधेरा 

इसी अँधेरे में टटोलता रहा , भरसक 

जितना भी आगे बढ़ा  , 

मिलता ही रहा 

उतना ही अँधेरा ...!!!

2 comments:

  1. और बढ़ो ....देखो ,अन्त में ,इतना अन्धेरा आ कहा से रहा है ....कोई अन्धेरोत्री तो नहीं ?

    ReplyDelete
  2. हर पोस्ट की पहिलकी लईनिया को पोलियों काहे हो जाता है बे

    ReplyDelete