Wednesday, June 5, 2013

इंडिगो ड्रीम

तुम ,
और मैं 
घास के गुच्छों को
रौंदते हुए
दूर तक
ख्वाब के ठीक पीछे
कभी उँगलियों से
ख्वाबों को छूते हुए
एक दुसरे की आँखों में झांकते हुए
और कभी  ये , सोचते हुए 
काश वही ठहर जाते 
जहा से शुरू हुए थे 
घास के गुछे 
और ख्वाब भी !!!!!!!

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