Saturday, May 18, 2013

मैं ही फोन क्यों करू ..!!!

तुम याद आती हो ,

बरबस ही ,

अनायास ही ,

यूँ ही ,

बड़ी बेतरतीबी से ,

और तो और मेरे ना चाहते हुए भी ,

तुम याद आती हो ,

गली में,

कूचे में ,

बस में ,

आफिस में ,

मेरे कमरे में ,

कभी अक्स नजर आता है तुम्हारा ,

बॉस की कुर्सी के पीछे ,

कभी आफिस कुलीग की कुर्सी पर ,

बैठी नजर आती हो ,

मेरे टेबल पर पड़ी ,

बिखरी फाइलों को देखकर भी तुम याद आती हो ,

फिर भी हमेशा की तरह ,

मैं ही फोन क्यों करू ..!!!

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