तुम याद आती हो ,
बरबस ही ,
अनायास ही ,
यूँ ही ,
बड़ी बेतरतीबी से ,
और तो और मेरे ना चाहते हुए भी ,
तुम याद आती हो ,
गली में,
कूचे में ,
बस में ,
आफिस में ,
मेरे कमरे में ,
कभी अक्स नजर आता है तुम्हारा ,
बॉस की कुर्सी के पीछे ,
कभी आफिस कुलीग की कुर्सी पर ,
बैठी नजर आती हो ,
मेरे टेबल पर पड़ी ,
बिखरी फाइलों को देखकर भी तुम याद आती हो ,
फिर भी हमेशा की तरह ,
मैं ही फोन क्यों करू ..!!!
बरबस ही ,
अनायास ही ,
यूँ ही ,
बड़ी बेतरतीबी से ,
और तो और मेरे ना चाहते हुए भी ,
तुम याद आती हो ,
गली में,
कूचे में ,
बस में ,
आफिस में ,
मेरे कमरे में ,
कभी अक्स नजर आता है तुम्हारा ,
बॉस की कुर्सी के पीछे ,
कभी आफिस कुलीग की कुर्सी पर ,
बैठी नजर आती हो ,
मेरे टेबल पर पड़ी ,
बिखरी फाइलों को देखकर भी तुम याद आती हो ,
फिर भी हमेशा की तरह ,
मैं ही फोन क्यों करू ..!!!
जाने दो ! कर लो !
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