हाँ , मुझे बहुत दूर जाना है
उस छोर तक जहाँ किनारा
बहुत धुंधला है
पर लोगो के हिलते हाथ
स्पष्ट ही दिख रहे है मुझे
जैसा की तुम बोलती
तुम तो नहीं रहोगी
और तुम्हारे हिसाब से
तुम्हारी यादें भी
इस बीच मैं
स्वप्न भी देखूंगा
और सम्भोग भी करूँगा
जैसा की मैं बोलता हूँ
मैं अब पहले जैसा नश्वर नहीं
पर अभी तक मैं शाश्वत भी नहीं
राह दूर है
और कंटक से भरी हुई
इस बीच में कही कोई गावं नहीं
कही कोई छाव नहीं
पर तुम तो रहोगी ही
रहोगी न .....!!!
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