आखिर धीरे धीरे ही सही
थोड़े हौले हौले ही सही
थोड़े हिचकोले क बाद
मैं उड़ ही चली थी
रिश्ते नाते भी थे पुछल्ले में
कुछ निठल्लों के ताने भी थे मुहल्ले में
पर कोई कुछ भी कहे
ये सब कुछ सहे
मैं उड़ ही चली थी
कभी मुस्कुराती
कभी बलखाती
कबूतरों के साथ ठुमक कर
यूँ ही इतराती
पर ये क्या अभी तो सवर ही रही थी
थोडा निखर ही रही थी
पर ना जाने क्यों खीचने लगी मेरी डोर
आखिर डोर
किसी पुरुष क हाथों ही तो पड़ी थी...!!
थोड़े हौले हौले ही सही
थोड़े हिचकोले क बाद
मैं उड़ ही चली थी
रिश्ते नाते भी थे पुछल्ले में
कुछ निठल्लों के ताने भी थे मुहल्ले में
पर कोई कुछ भी कहे
ये सब कुछ सहे
मैं उड़ ही चली थी
कभी मुस्कुराती
कभी बलखाती
कबूतरों के साथ ठुमक कर
यूँ ही इतराती
पर ये क्या अभी तो सवर ही रही थी
थोडा निखर ही रही थी
पर ना जाने क्यों खीचने लगी मेरी डोर
आखिर डोर
किसी पुरुष क हाथों ही तो पड़ी थी...!!
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