एक दिन
छोड़ जाऊँगा
सब कुछ
हे आकाश
जो हैं थोडा विस्तार
निः शंक मन
मुझमे
दूँ वापस क्यों रखूं खुद में
हे जल
जो मैं हूँ
थोडा निर्मल
कल - कल , शीतल , अविरल
दूँ वापस
क्यों रखूं खुद में
हे अग्नि
जो हैं तेज, उष्ण
थोडा भी मुझमे
दूँ वापस क्यों रखूं खुद में
हे धरा
जो ही थोडा भार
जैसे कुछ ठोस सा भरा
थोडा भी मुझमे
दूँ वापस क्यों रखूं खुद में
हे वायु
जो हैं निर्मल , चिरायु
थोडा मुझमे
दूँ वापस
क्यों रखूं खुदमे
फिर चाहे जो बचे
हे पिता
तुम चाहे जो हो रचे
वह तो अनिवार्य हैं
सर्वथा स्वीकार हैं
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