Friday, May 4, 2012

दूँ वापस

एक दिन 
छोड़ जाऊँगा 
सब कुछ 
हे आकाश 
जो हैं थोडा विस्तार 
निः शंक मन 
मुझमे 
दूँ वापस क्यों रखूं खुद में 

हे जल 
जो मैं हूँ 
थोडा निर्मल 
कल - कल , शीतल , अविरल 
दूँ वापस 
क्यों रखूं खुद में 

हे अग्नि 
जो हैं तेज, उष्ण 
थोडा भी  मुझमे
दूँ वापस क्यों रखूं खुद में

हे धरा 
जो ही थोडा भार 
जैसे कुछ ठोस सा भरा 
थोडा भी  मुझमे
दूँ वापस क्यों रखूं खुद में 

हे वायु
जो हैं निर्मल , चिरायु 
थोडा मुझमे
दूँ वापस 
क्यों रखूं खुदमे


फिर चाहे जो बचे 
हे पिता 
तुम चाहे जो हो रचे 
वह तो अनिवार्य हैं
सर्वथा स्वीकार हैं 

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